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वाराणसी- श्री काशी विश्वनाथ कारिडोर को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दी 1700 फीट जमीन, बदले में मंदिर प्रशासन से मिली इतनी जगह।

Masjid panel gives land for Shri Kashi Vishwanath temple corridor project in exchange deal |

वाराणसी। श्रीकाशी विश्वनाथ कारिडोर को भव्यता प्रदान करने के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने 1700 वर्ग फीट की जमीन दे दी। इसके बदले मंदिर प्रशासन ने भी बांस फाटक क्षेत्र में इतनी ही कीमत की 1000 वर्ग फीट हजार वर्ग फीट की जमीन अंजुमन इंतजामिया मस्जिद को सौंपी। श्रीकाशी विश्वनाथ कारिडोर निर्माण में इसे ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है। लंबी बातचीत के बाद दोनों पक्ष इस निर्णय पर पहुंच सके हैं। आर्टिकल 31 में निहित एक्सचेंज आफ प्रापर्टी के तहत संपत्तियों का हस्तांतरण हुआ।

विनिमय प्रणाली के तहत इन संपत्तियों के हस्तांतरण में 9.29 लाख रुपये की ई-स्टांप ड्यूटी अदा की गई। इस प्रकिया को दो चरणों में पूरा किया गया। इसके तहत एक पक्ष ने आठ जुलाई तो दूसरे पक्ष ने 10 जुलाई को रजिस्ट्री की। यह विनिमय पत्र राज्यपाल की स्वीकृति पर बना। स्थानीय स्तर पर राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व नोडल अधिकारी व मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सुनील कुमार वर्मा ने प्रथम पक्ष के तौर किया।

वहीं, द्वितीय पक्ष के तौर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बजरिए सेक्रेटरी अब्दुल बातिन नोमानी ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की यह जमीन ज्ञानवापी मस्जिद से महज सवा सौ फीट दूर है। विधिक कार्यवाही पूरा होने के साथ ही श्रीकाशी विश्वनाथ कारिडोर निर्माण में लगी कंपनी ने कब्जे में ले लिया है। जमीन पर बने ढांचागत निर्माण को गिराने का कार्य शुरू हो गया है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी इस जमीन को वर्ष 1993 में स्थानीय प्रशासन को सौंप दिया था। इस जमीन पर प्रशासन ने कंट्रोल रूम स्थापित किया है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने स्पष्ट किया है कि इस जमीन का संबंध ज्ञानवापी मस्जिद से नहीं है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से अंजुमन इंतजामिया मस्जिद ने हस्तांतरण प्रक्रिया को पूर्ण कराया है।

दरअसल कॉरिडोर निर्माण में जमीन का यह हिस्‍सा रोड़ा बन रही थी। इस जमीन को लेकर कई बार आपस में दोनों पक्ष में बात हुई थी। आखिरकार पांच सौ मीटर की दूरी पर बांस फाटक के पास ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष को जमीन दी गई है। मुस्लिम पक्ष को जो जमीन दी गई है, वह मंदिर प्रशासन ने उपलब्‍ध कराया है। इस बाबत पूर्व में शासन की ओर से भी जमीन को लेकर पहल की गई थी। आर्टिकल 31 के तहत एक्‍सचेंज ऑफ प्रॉपर्टी के तहत जारी दस्‍तावेजों में ई स्‍टांप के जरिए इस संपत्ति का हस्‍तांतरण किया गया है। इसमें काशी विश्‍वनाथ मंदिर प्रशासन और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से नौ लाख उनतीस हजार रुपये की स्‍टांप ड्यूटी चुकाकर संपत्ति का हस्‍तांतरण किए जाने की जानकारी सामने आई है। जमीन के बारे में जारी रिपोर्ट के अनुसार, जमीनों का हस्‍तांतरण आदि विश्‍वेश्‍वर और ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से जमीनों की अदला-बदली के तौर पर की गई है।

बता दें कि काशी विश्वनाथ धाम मंदिर के करीब स्थित ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित वक्फ बोर्ड की जमीन पर कंट्रोल रूम बना था। काशी विश्वनाथ धाम के नक्शे के अनुसार इस स्थान पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से वॉच टावर बनाया जाना है। इस वजह से जमीन की जरूरत पड़ी। बात करने पर मुस्लिम समाज के लोगों ने भी दो कदम आगे बढ़ाते हुए वक्फ बोर्ड की जमीन देने के लिए सहमति जताई।

मंदिर की ओर से कहा गया कि हम उतनी ही जमीन बांसफाटक के पास दे देंगे। मुस्लिम पक्ष की सहमति मिलने के बाद मंदिर की तरफ से बने प्रस्ताव को विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद में रखा गया। परिषद की मुहर लगते ही दोनों पक्ष ने एक-दूसरे को जमीन हस्तांतरित कर दी। मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने बताया कि 1700 वर्ग फीट जमीन मंदिर और मस्जिद को हस्तांतरित हुई है। इसके लिए विधिक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।

गौरतलब है कि ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजापाठ के अधिकार देने को लेकर साल 1991 में मुकदमा दायर किया गया था। इस मामले में निचली अदालत और सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ वर्ष 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से कई वर्षों से स्टे होने के कारण मुकदमा विचाराधीन रहा।

वर्ष 2019 में 10 दिसंबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर नाथ की ओर से वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दायर किया था। इसमें कहा था कि ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से रडार तकनीक से सर्वेक्षण कराया जाए।

इस मामले में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड प्रतिवादी हैं। अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दिया तो दोनों प्रतिवादियों ने जिला जज की अदालत में आपत्ति जताते हुए रिवीजन याचिका दाखिल कर दी। दोनों प्रतिवादियों का कहना है कि जिस अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया है, यह प्रकरण उसके क्षेत्राधिकार से बाहर का है।

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