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100 करोड़ के जमीन घोटाले में अथॉरिटी के पूर्व मैनेजर समेत 3 गिरफ्तार।

Two government officials among three held over land fraud in Greater Noida.

नोएडा। उत्तर प्रदेश के नोएडा में गौतमबुद्धनगर के तुस्याना गांव में हुए 100 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में बड़ी कार्रवाई हुई है। इस मामले की जांच कर रही एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) और ईकोटेक-तीन कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम ने बुधवार को एसपी सरकार में पूर्व मंत्री और वर्तमान में बीजेपी एमएलसी नरेंद्र भाटी के छोटे भाई ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन प्रबंधक कैलाश भाटी, अथॉरिटी के क्लर्क कमल सिंह और दीपक भाटी निवासी मकोड़ा को गिरफ्तार किया है। कैलाश भाटी वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडा) में तैनात हैं।

जानकारी के मुताबिक, प्राधिकरण की मिलीभगत से कागजातों में छेड़छाड़ कर फर्जी लोगों को मुआवजा दिया गया और अधिग्रहीत जमीन के बदले मिलने वाली छह फीसदी किसान आबादी के प्लॉट को षडयंत्र कर ग्राम तुस्याना से ग्राम तुगलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। जांच में कई अन्य लोगों के नाम प्रकाश में आए हैं। इस कार्रवाई से प्राधिकरण में हड़कंप मच गया है। घोटाला 2014 में किया गया था।

अपर पुलिस आयुक्त मुख्यालय भारती सिंह ने बताया कि कोतवाली ईकोटेक-तीन में फरवरी 2021 में तुस्याना गांव में भूमि घोटाले को लेकर एक अभियोग पंजीकृत हुआ था, जो कि सच सेवा ट्रस्ट की ओर से पंजीकृत कराया गया था। वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर इसकी जांच के लिए अप्रैल 2021 में एसआईटी गठित की गई। मामले की जांच में पाया गया कि तुस्याना ग्राम के खसरा संख्या-1104 की 20 बीघा जमीन से संबंधित प्राधिकरण के कागजातों में छेड़छाड़ और षडयंत्र करते हुए 20 फीसदी मुआवजा फर्जी लोगों ने उठाया है।

किसान आबादी का छह फीसदी भूखंड जो ग्राम तुस्याना में आवंटित था, उसे ग्राम तुगलपुर हल्दौना केपी-1 में स्थानांतरित कर दिया गया। मामले की जांच में कुछ अभियुक्तों के नाम प्रकाश में आए थे। पुख्ता साक्ष्य मिलने पर बुधवार को तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर किया गया। इस मामले में राजेंद्र वांछित चल रहे हैं। अपर पुलिस आयुक्त ने बताया कि जांच में कुछ और लोगों के नाम प्रकाश में आए हैं।

तुस्याना भूमि घोटाले को ऐसे समझें॥

वर्ष 1998 में तुस्याना गांव में 100 एकड़ जमीन पर पट्टे का आवंटन किया गया था। पूर्व एडीएम फाइनैंस एमएन उपाध्याय की शिकायत पर जांच में पता चला कि काफी अपात्र लोगों को पट्टों का आवंटन किया गया था। आर्थिक रूप से संपन्न और बाहरी लोगों के भी पट्टे किए गए थे। पट्टे की काफी जमीन टीपीएल कंपनी लिमिटेड ने तुस्याना में इलेक्ट्रॉनिक सिटी बसाने के लिए 20 अप्रैल 1989 को उत्तर प्रदेश सरकार से भूमि खरीदने की अनुमति हासिल की थी।

सरकार ने कंपनी को ‘उत्तर प्रदेश जमीदारी अबोलिशन एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट’ के तहत छूट दी थी। राज्य सरकार ने 17 अगस्त 2006 को मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन करने पर एनओसी रद्द कर दी थी। उसी दिन कंपनी की सारी जमीन राज्य सरकार में निहित कर दी गई थी। खसरा संख्या 1104 कंपनी की खतौनी में दर्ज था।

डायरेक्टर पीएस समरवाल ने वालों ने इस खतरे से करीब 20 बीघा जमीन की पावर अटॉर्नी राजेंद्र निवासी मकोड़ा और उनके परिवार के लोगों के नाम कर दी। इसके बाद 2014 से लेकर 2017 तक इस जमीन का ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण से 100 से 150 करोड़ रुपये के बीच मुआवजा उठाया गया। उसके बाद 64 परसेंट मुआवजा देने के कोर्ट से आदेश करा लिए, लेकिन जिला प्रशासन ने मुआवजा नहीं दिया था।

एसआईटी ने शुरू की जांच॥

सच सेवा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष जितेंद्र कुमार भाटी ने कोर्ट के आदेश पर 2021 में ग्रेटर नोएडा के पूर्व महाप्रबंधक रविंद्र तोंगड़, राजेंद्र सिंह निवासी मकोड़ा, श्वेता सिंह निवासी मकोड़ा, मधु सिंह निवासी मकोड़ा, गीता सिंह निवासी झंडेवालान दिल्ली के खिलाफ केस दर्ज कराया था। इसके बाद रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन राजीव कुमार मित्तल की अध्यक्षता में 9 जून 2022 को हाई पावर जांच समिति का गठन किया गया। समिति ने तुस्याना में खाता संख्या 1104, 480, 1106 और 1105 जांच शुरू की।

कैलाश भाटी की भूमिका॥

मुख्य आरोपी मकोड़ा निवासी राजेंद्र सिंह को पट्टे की जमीन की एवज में मुआवजा और 6 फीसदी प्लॉट मिला। इसे कैलाश भाटी समेत कई अधिकारियों ने गलत तरीके से स्थानांतरित करते हुए केपी-1 तुगालपुर में लगा दिया, जबकि प्लॉट तुस्याना गांव में लगना था। इसके बाद राजेंद्र सिंह ने इस जमीन पर कमर्शल बिल्डिंग बना ली। प्लॉट का जो अप्रूवल हुआ था उसमें कई नाम चेंज कर फर्जीवाड़ा किया गया।

24 नवंबर 2021 को एक ही दिन में आवंटन अप्रूवल, लीज डीड, रजिस्ट्री और पजेशन किया गया, जिस पर हस्ताक्षर कैलाश भाटी और कमल सिंह के थे। यह प्लॉट ग्रीन बेल्ट में है। इस जमीन के ऊपर से हाईटेंशन लाइन भी गुजर रही है। लिहाजा, इस भूखंड का आवंटन पूरी तरह नियमों के विरुद्ध है। यह आवंटन करवाने में रविंद्र तोंगड़ की अहम भूमिका रही है।

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