नई दिल्ली। देशभर में धूमधाम से छठ पूजा मनाई जा रही है। 19 नवंबर यानि रविवार को श्रद्धालुओं ने पानी में खड़े होकर सूर्य देवता की पूजा की। सूर्यास्त होने पर सूर्य देवता को वर्ग देकर इस पूजा की शुरुआत की गई। इसके बाद सुबह सूर्य देवता को वर्ग देकर ही इस पूजा का समापन भी किया जाएगा।
‘छठ पूजा’ हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है। महिलाएं इस व्रत को संतान की लंबी आयु, पति के स्वस्थ जीवन और घर-परिवार के सुख-सौभाग्य की कामना के लिए रखती हैं। चार दिवसीय छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है। 19 नवंबर यानि रविवार को छठ व्रती महिलाओं ने तीसरे दिन नदी और तालाबों के किनारे डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठी मइया से कामना की। इसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। इसके बाद सुबह सूर्य देवता को वर्ग देकर ही इस पूजा का समापन भी किया जाएगा। छठ पूजा में सही समय पर ही सूर्य देव को अर्घ्य देने से व्रत का फल मिलता है।
पंचांग के अनुसार, लोकआस्था का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस साल छठ पर्व 17-20 नवंबर 2023 तक है। आज षष्ठी तिथि पर 19 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया और अब 20 नवंबर को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ व्रत संपन्न होगा।
बता दें कि छठ पर्व पर व्रती महिलाओं ने पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और कठोर नियमों का पालन भी करती हैं। इसलिए छठ को सबसे कठिन व्रतों में एक माना गया है। वैसे तो छठ देशभर में मनाया जाता है। लेकिन विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में इसकी धूम देखने को मिली। छठ पूजा के दिन व्रती के साथ अन्य लोग भी सूर्य देव को अर्घ्य दिया। अगर आप छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य दे रहे हैं तो स्नान जरूर कर लें। साथ ही इस दिन नमक का सेवन न करें। आप सेंधा नमकयुक्त भोजन कर सकते हैं. लेकिन प्याज-लहसुन का सेवन भूलकर भी न करें।
जानें क्या है संध्या अर्घ्य?
छठ पूजा का तीसरा दिन है। इस दिन भक्तों ने संध्या अर्घ्य या पहला अर्घ्य के पारंपरिक अनुष्ठान का पालन करते हुए, डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। तीसरे दिन से ही छठ का प्रसाद सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है, जिसका बहुत महत्व होता है। पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ इस व्रत को करने के परिवार में खुशहाली आती है और जीवन में कष्टों से मुक्ति मिलती है। महिलाओं ने शाम के समय पवित्र नदी के तट पर प्रसाद सामग्री से भरे सूप और बांस की टोकरियों के साथ भगवान सूर्य और छठ माता को अर्घ्य दिया। इस दिन व्रत रखने वाले लोग हर तरह के खाने-पीने से परहेज करते हैं। निर्जला व्रत छठ के चौथे या आखिरी दिन समाप्त होता है, जब सूर्य देव और छठी माता को उषा अर्घ्य दिया जाता है।