भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर बीते एक वर्षों से हिंसा की आग में जल रही है। शुक्रवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य में जातीय संकट का समाधान जल्द ही निकाल लिया जाएगा। बीरेन सिंह के पास गृह विभाग भी है। उन्होंने कहा कि मणिपुर जातीय संकट का कुछ समाधान अगले दो-तीन महीनों में ढूंढ लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में लोकसभा चुनाव ड्यूटी के लिए तैनात सुरक्षा बल मणिपुर लौट आए हैं और उन्हें राज्य के संवेदनशील और संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने मीडिया से कहा, “पिछले कई महीनों में राज्य के अधिकांश हिस्सों में हिंसा की घटनाओं में काफी कमी आई है, सिवाय कुछ स्थानों से हिंसा की छिटपुट घटनाओं के।” उन्होंने यह भी दावा किया कि पिछले 14 महीनों में से हिंसक घटनाएं पहले सात महीनों में हुईं जबकि राज्य के कुछ हिस्सों को छोड़कर बाद के महीनों में ऐसी घटनाओं में काफी कमी आई। मुख्यमंत्री ने कहा, “मणिपुर के ज़्यादातर इलाकों में स्कूल, दफ़्तर और व्यावसायिक प्रतिष्ठान सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। हालांकि कुछ इलाकों से हिंसा की कुछ घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि केंद्रीय बलों की वापसी से ऐसी घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकेगा।”
बीरेन सिंह ने यह भी कहा कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मणिपुर को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है तथा वह राज्य में शांति लाने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करने के लिए शीर्ष अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की थी। सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों मणिपुर के घटनाक्रम पर लगातार नज़र रख रहे हैं। वे राज्य में जातीय मुद्दों को सुलझाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं।”
बता दें कि, मणिपुर बीते एक वर्षों से हिंसा की आग में जल रही है। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अध्यक्ष मोहन भागवत ने भी मणिपुर मुद्दे पर चुप्पी तोड़ते हुए केंद्र सरकार को राज्य में फिर से शांति स्थापित करने का संदेश दिया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, मणिपुर एक साल से शांति का इंतजार कर रहा है। यह 10 साल से शांत था। ऐसा लगता था कि पुरानी बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है। अचानक जो कलह वहां उपज गया या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है। त्राही-त्राही कर रहा है और उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
डॉ. हेडगेवार स्मृति भवन परिसर में संगठन के कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय के समापन कार्यक्रम में आरएसएस प्रशिक्षुओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा पिछले साल मई में मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी थी। तब से अब तक करीब 200 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि बड़े पैमाने पर आगजनी के बाद हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। इस आगजनी में मकान और सरकारी इमारतें जलकर खाक हो गई हैं। पिछले कुछ दिनों में जिरीबाम से ताजा हिंसा की सूचना आयी हैं।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, चुनाव लोकतंत्र की एक अनिवार्य प्रक्रिया है। इसमें दो पक्ष होने के कारण प्रतिस्पर्धा होती है। चूंकि यह एक प्रतिस्पर्धा है, इसलिए खुद को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन इसमें एक गरिमा होती है। झूठ का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। संसद में जाने और देश चलाने के लिए लोगों को चुना जा रहा है। वे सहमति बनाकर ऐसा करेंगे। हमारे यहां सहमति से चलने की परंपरा रही है। यह प्रतिस्पर्धा कोई युद्ध नहीं है। एक-दूसरे की जिस तरह की आलोचना की गई, इससे समाज में मतभेद पैदा होगा और विभाजन होगा।
17 जून को आयोजित बैठक में अमित शाह ने अधिकारियों को मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए केंद्रीय बलों की रणनीतिक तैनाती करने तथा यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पूर्वोत्तर राज्य में आगे कोई हिंसा की घटना न हो। उन्होंने मणिपुर में जातीय संकट को हल करने के लिए अगले कुछ महीनों में मैतेई और कुकी-ज़ोमी नेताओं तथा नागरिक समाज समूहों के साथ बातचीत करने का भी संकेत दिया।
मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भी इस सप्ताह की शुरुआत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और गृह मंत्री शाह तथा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी और उन्हें मणिपुर में विभिन्न राहत शिविरों में शरण लिए हुए विस्थापित लोगों के समक्ष आ रही कठिनाइयों से अवगत कराया था।