नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर आपातकाल को लेकर कांग्रेस को घेरा है। 1977 में लगे आपातकाल को आज 49 वर्ष पूरे हो गए हैं। इमरजेंसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैक टू बैक चार ट्वीट किए। उन्होंने कांग्रेस को घेरते हुवे कहा कि जिन्होंने आपातकाल लगाया, उन्हें हमारे संविधान के प्रति प्यार के इजहार का कोई अधिकार नहीं है। पीएम मोदी ने ट्वीट में लिखा, ‘जिस मानसिकता के कारण आपातकाल लगाया गया, वह उसी पार्टी में बहुत ज्यादा जीवित है जिसने इसे लगाया था। वे अपने दिखावे के जरिए संविधान के प्रति अपने तिरस्कार को छिपाते हैं, लेकिन भारत के लोगों ने उनकी हरकतों को समझ लिया है और इसीलिए उन्होंने उन्हें बार-बार नकार दिया है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि जिस मानसिकता के कारण आपातकाल लगाया गया, वह उसी पार्टी में बहुत ज्यादा जीवित है जिसने इसे लगाया था। वे अपने दिखावे के जरिए संविधान के प्रति अपने तिरस्कार को छिपाते हैं, लेकिन भारत के लोगों ने उनकी हरकतों को समझ लिया है और इसीलिए उन्होंने उन्हें बार-बार नकार दिया है। जिन्होंने आपातकाल लगाया, उन्हें हमारे संविधान के प्रति अपने प्रेम का इजहार करने का कोई अधिकार नहीं है। ये वही लोग हैं जिन्होंने अनगिनत मौकों पर आर्टिकल 356 लगाया, प्रेस की आजादी को खत्म करने वाला विधेयक पारित किया, संघवाद को नष्ट किया और संविधान के हर पहलू का उल्लंघन किया।
पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘आज का दिन उन सभी महान पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया। #DarkDaysOfEmergency हमें याद दिलाता है कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने बुनियादी स्वतंत्रताओं को खत्म किया और भारत के संविधान को रौंद दिया, जिसका हर भारतीय बहुत सम्मान करता है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि सिर्फ सत्ता पर काबिज रहने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हर लोकतांत्रिक सिद्धांत की अवहेलना की और देश को जेल बना दिया। कांग्रेस से असहमत होने वाले हर व्यक्ति को प्रताड़ित और परेशान किया जाता था। सबसे कमजोर वर्गों को निशाना बनाने के लिए सामाजिक रूप से प्रतिगामी नीतियां लागू की गईं। आपातकाल के काले दिन हमें बताते हैं कि सत्ता के लिए कांग्रेस क्या-क्या कर सकती है।
बता दें कि, भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहां पर जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार देश का शासन चलाती है, लेकिन जब देश में कुछ विशेष परिस्तिथियाँ पैदा हो जातीं हैं, तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा भी करनी पड़ती है। भारतीय संविधान में आर्टिकल 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध दिए गए हैं। आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है और सभी राज्य, केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं।
राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं?॥
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है। राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में लगाया जाता है, जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है। भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था और यह 21 महीनों तक चला था। उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे।
गौरतलब हैं कि, मार्च 1971 में देश में आम चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई थी।
इस चुनाव में इंदिरा गाँधी भी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोक सभा सीट से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था।
राजनारायण उत्तर प्रदेश के वाराणसी के प्रखर समाजवादी नेता थे। उनके इंदिरा गांधी से कई मसलों पर नीतिगत मतभेद थे। इसलिए वे कई बार उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े और हारते रहे। वर्ष 1971 में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और यहीं से शुरू हो गया देश में राजनीतिक उथल पुथल का दौर।
राजनारायण के कोर्ट में प्रसिद्द वकील शांतिभूषण थे। हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। यह मामला राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ नाम से जाना जाता है।
वकील शांतिभूषण ने सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग सिद्ध करने के लिए यह उदाहरण दिया कि प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर ने राष्ट्रपति द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था, जो कि सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का पुख्ता सबूत था।
उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है।
दरअसल उस समय देश में ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ का माहौल था। ऐसे माहौल में इंदिरा गांधी के होते किसी और को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता था। साथ ही इंदिरा अपनी पूरी पार्टी में किसी पर भी विश्वास नहीं करती थीं। इस संकट के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और प्रधानमंत्री का पद उन्हे सौंप दें।
पत्रकार इंदर मल्होत्रा के अनुसार, जब प्रधानमंत्री आवास पर यह चर्चा चल रही थी उसी समय वहां संजय गांधी आ गए। उन्होंने अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर सलाह दी कि वे इस्तीफा न दें। उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि यदि उन्होंने प्रधानमंत्री का पद किसी और को दिया तो फिर वह व्यक्ति इसे नहीं छोड़ेगा और आपके द्वारा पार्टी में बनायीं गयी पकड़ ख़त्म हो जाएगी।
इंदिरा गांधी अपने बेटे के तर्कों से सहमत हो गई और उन्होंने तय किया कि वे इस्तीफा देने के बजाय 3 हफ़्तों की मिली मोहलत का फायदा उठाते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी।
इस केस की सुनवाई जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने की थी। जज ने अपने फैसले में कहा कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दे दी ,लेकिन कहा कि वे अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं। इस बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आंदोलन भी उग्र हो रहा था। बिहार में इस आंदोलन को हवा दे रहे थे जयप्रकाश नारायण।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी। जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता के अंश ” सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” का नारा बुलंद किया था।
रैली में जयप्रकाश ने विद्यार्थियों, सैनिकों, और पुलिस वालों से अपील कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें, क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमन्त्री पद से हटने को बोल दिया है। बस इसी रैली के आधार पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का फैसला किया था।
इसके अलावा इन कारणों ने भी इंदिरा को आपातकाल के लिए मजबूर किया था; इंदिरा के खिलाफ पूरे देश में जन आक्रोश बढ़ रहा था। इसमें छात्र और सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हो गए थे।
उधर कोर्ट के आदेश ने इंदिरा गांधी की हालात को पंगु बना दिया था, क्योंकि इंदिरा अब संसद में वोट नहीं डाल सकती थी और उनको पार्टी के किसी नेता पर भरोसा भी नहीं था। इसके अलावा इंदिरा को लगा कि जयप्रकाश के आवाहन पर सेना तख्ता पलट कर सकती है।
इंदिरा को आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा बहाना जयप्रकाश द्वारा बुलाया गया असहयोग आन्दोलन था। इसी आधार पर इंदिरा ने 26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि जिस तरह का माहौल (सेना, पुलिस और अधिकारियों के भड़काना) देश में एक व्यक्ति अर्थात जयप्रकाश नारायण के द्वारा बनाया गया है ,उसमें यह जरूरी हो गया है कि देश में आपातकाल लगाया जाये ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके।
(इनपुट के साथ)