अयोध्या। उत्तर प्रदेश के अयोध्या के भव्य राम मंदिर में सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई। रामलला की इस नई मूर्ति को “बालक राम” के नाम से जाना जाएगा। दरअसल, इसमें भगवान को पांच साल के लड़के के रूप में खड़ी मुद्रा में दर्शाया गया है। भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को की गई थी।
भगवान राम की मूर्ति का नाम ‘बालक राम’ रखने का कारण यह है कि वह एक बच्चे की तरह दिखते हैं, जिनकी उम्र पांच साल है। यह जानकारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह से जुड़े पुजारी अरुण दीक्षित ने पीटीआई को दी। उन्होंने कहा कि पहली बार जब मैंने मूर्ति देखी, तो मैं रोमांचित हो गया। मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। उस समय मुझे जो अनुभूति हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
वाराणसी के पुजारी अरुण दीक्षित लगभग 50-60 प्राण प्रतिष्ठा कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “अब तक किए गए सभी अभिषेकों में से, यह मेरे लिए सबसे अलौकिक, दिव्य और सर्वोच्च है।” दीक्षित ने बताया कि उन्हें मूर्ति की पहली झलक 18 जनवरी को मिली थी।
गहन शोध के बाद तैयार हुए हैं रामलला के आभूषण और वस्त्र॥
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अनुसार, मूर्ति के लिए आभूषण अध्यात्म रामायण, वाल्मिकी रामायण, रामचरितमानस और अलवंदर स्तोत्रम जैसे ग्रंथों के गहन शोध और अध्ययन के बाद तैयार किए गए हैं। मूर्ति को बनारसी कपड़े से सजाया गया है, जिसमें एक पीली धोती और एक लाल ‘पताका’ या ‘अंगवस्त्रम’ है।
लखनऊ में बने आभूषण, वस्त्र दिल्ली के डिजाइनर ने किए तैयार॥
‘अंगवस्त्रम’ को शुद्ध सोने की ‘जरी’ और धागों से सजाया गया है, जिसमें शुभ वैष्णव प्रतीक जैसे ‘शंख’, ‘चक्र’, ‘पद्म’ और ‘मयूर’ शामिल हैं. रामलला के आभूषण अंकुर आनंद के लखनऊ स्थित हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स द्वारा तैयार किए गए हैं। वहीं, रामलला के वस्त्रों को दिल्ली स्थित डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने तैयार किया है। उन्होंने इस परियोजना के लिए अयोध्या धाम से काम किया था।
मूर्ति बनाने में रातों की नींद उड़ गई- मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज॥
बताते चलें कि रामलला की प्रतिमा को मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने तैयार किया है। अपने काम के लिए भरपूर प्रशंसा पाने वाले योगीराज ने कहा कि मूर्ति पर सटीकता से काम करते हुए मेरी रातों की उड़ गई। मुझे लगता है कि मैं पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूं। आज मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन है। मैंने अपने पिता से मूर्तिकला की कला सीखी। आज यहां अपने आदर्श को देखकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है।
3 अरब साल पुरानी चट्टान पर बनी है रामलला की नई मूर्ति॥
51 इंच की मूर्ति को तीन अरब साल पुरानी चट्टान से बनाया गया है। नीले रंग की कृष्णा शिल (काली शिस्ट) की खुदाई मैसूर के एचडी कोटे तालुक में जयापुरा होबली में गुज्जेगौदानपुरा से मिली थी। यह एक महीन से मध्यम दाने वाली, आसमानी-नीली मेटामॉर्फिक चट्टान है, जिसे आमतौर पर इसकी चिकनी सतह की बनावट के कारण सोपस्टोन कहा जाता है।
यह पत्थर मूर्तिकारों के लिए मूर्तियां बनाने के लिए आदर्श पत्थर होता है. कृष्ण शिला 78 साल के रामदास की कृषि भूमि को समतल करते समय मिली थी। एक स्थानीय ठेकेदार ने पत्थर की गुणवत्ता का आकलन किया था। उन्होंने अपने संपर्कों के माध्यम से अयोध्या में मंदिर के ट्रस्टियों का ध्यान आकर्षित किया।