नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद की सुनवाई 20 अक्टूबर के लिए टाल दी है। कोर्ट ने मस्ज़िद परिसर में मिले शिवलिंग की पूजा करने या उसकी कार्बन डेटिंग की मांग को भी सुनने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने कहा कि इस मामले में जिसे जो भी कहना है, वह वाराणसी के जिला जज की कोर्ट में कहे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के जरिए मांग की गई कि ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग और जीपीआरएस सर्वे करवाया जाए। लेकिन याचिकाकर्ता को कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई से साफ इंकार कर दिया है। कोर्ट ने ये मुद्दा निचली अदालत में उठाने के लिए कहा है। कोर्ट ने राजेश मणि त्रिपाठी को भी कहा कि वो ज्ञानवापी परिसर से मिले शिवलिंग की सावन में सेवा पूजा करने की इजाजत देने वाली याचिका वापस लें। क्योंकि अभी तो इस पर सुनवाई ही चल रही है।
कोर्ट ने मुस्लिम-हिंदू पक्ष से क्या कहा?॥
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले पर सुनवाई के लिए जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई में हमने ऑर्डर 7 नियम 11 पर सुनवाई करने की सिफारिश के साथ निचली अदालत में सुनवाई ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। मस्जिद कमिटी की तरफ से बताया गया कि ऑर्डर 7 नियम 11 के तहत निचली अदालत में बहस चल रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमारे आदेश पर ही पहले आर्डर 7 रूल 11 पर सुनवाई चल रही है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने मस्जिद पक्ष को कहा कि निचली अदालत में सुनवाई पूरी होने और आदेश आने का इंतजार कीजिए। आपके कानूनी रास्ते को हम खुला रखेंगे। मान लीजिए अगर निचली अदालत का फैसला आपके खिलाफ जाता है तो फिर आपके पास ऊंची अदालत में उसे चुनौती देने के कानूनी विकल्प होंगे।
मस्जिद कमिटी के वकील की क्या दलील?॥
मस्जिद कमिटी के वकील अहमदी ने कहा कि सर्वे कमीशन की नियुक्ति को लेकर हम बहस कर रहे हैं। इस मामले में कमिश्नर की नियुक्ति सही नहीं है। ये कमिश्नर की नियुक्ति का मामला ही नहीं है। हाईकोर्ट के कमिश्नर की नियुक्ति का आदेश सही नही था।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अभी तो मामला आदेश सात नियम 11 को लेकर है। अभी तो बात सर्वे कमिश्नर तक आई ही नहीं है। आपके पास इस मामले पर दलील देने के विकल्प खुले हैं। आप समय आने पर उन्हें उठाईएगा।
जस्टिस नरसिम्हा ने मस्जिद पक्ष के पैरोकार हुजैफा अहमदी से पूछा कि क्या आपने कमिश्नर नियुक्ति सहित अन्य मसलों पर अपनी आपत्ति जिला जज को दी हैं? इस पर हिंदू पक्षकारों के सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि वहां अभी ये मसला ही नहीं है। इनको कमिश्नर की नियुक्ति के कोर्ट के अधिकार को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।
इस दलील पर कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से पूछा कि आपकी आपत्ति है कि कमिश्नर बिना आपकी सहमति के नियुक्त हुए है? अहमदी ने साफ कहा कि हमनें पहले भी कमिश्नर की नियुक्ति पट आपत्ति दर्ज कराई थी। निचली अदालत ने उसे खारिज कर दिया तो हम हाई कोर्ट गए।
मुस्लिम पक्ष की दलील को समझते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम निचली अदालत को कहेंगे कि सुनवाई के दौरान वो हाई कोर्ट के आदेश से बिना प्रभावित मामले की सुनवाई करे। ऐसे में आपकी याचिका अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित रखने का क्या मतलब है?
इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि हम पहले जिला अदालत के फैसले का इंतजार करेंगे। तब तक याचिकाकर्ता मस्जिद पक्ष का विकल्प खुला रहेगा। अक्तूबर के पहले हफ्ते में होगी अगली सुनवाई।
राजेश मणि त्रिपाठी की याचिका कोर्ट को आई हंसी॥
वैसे सुप्रीम कोर्ट के सामने राजेश मणि त्रिपाठी की याचिका भी रखी गई थी। त्रिपाठी ने कहा कि वो सावन के महीने में ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहते है। कोर्ट में सुनवाई कर रहे जज इस पर अपनी हंसी नहीं रोक पाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप अपनी याचिका वापस ले लें। इसके बाद त्रिपाठी ने याचिका वापस ले ली।
अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से हरिशंकर जैन पेश हुए जिसमें जीपीआरएस के जरिए ज्ञानवापी परिसर के सर्वे और वहां मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग तकनीक से पड़ताल कराने का आदेश देने की बात कही गई है। कोर्ट ने कहा कि ये दलीलें और अपील ट्रायल कोर्ट में चल रही सुनवाई में रखी जाएं।
बता दें कि इससे पहले इस मामले की सुनवाई 18 मई को हुई थी। उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने पूरा मामला सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट से ज़िला जज की कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। उस आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिला जज सबसे पहले मस्ज़िद कमिटी के उस आवेदन को सुनें जिसमें हिन्दू पक्ष की याचिका को सुनवाई के अयोग्य बताया गया है।